क्यों करू मैं अपने शून्य पर शर्म?


क्यों करू मैं अपने शून्य पर शर्म?
जब अनगिनत की शुरुआत ही शून्य से है…
ये तो केवल एक पड़ाव था,
सफर तो अभी बहुत है…

शून्य से शुरुआत की तो क्या हुआ…
हम अनन्त के मुसाफिर है…
परिश्रम मेरा ठिकाना है
गगन के उसपार तक जाना है….

कभी तो वह दिन भी आएगा
मंज़िल तक मेरा श्रम पहुॅचएगा…..
©सचि मिश्रा


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