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कुछ पल
इस दुनिया के शोर सेकुछ पल अपने लिए चुरा रही हूं… मैं.. हाँ मैं कुछ पलअकेले बीता रही हूं… दुनिया के आडंबरो से भाग केकुछ पल सादगी तलाश रही हूं… नहीं… मुझे अकेला महसूस नहीं हो रहामैं तो केवल कुछ पल सुकून से जीना चाह रही हूं… © सचि मिश्रा
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क्यों करू मैं अपने शून्य पर शर्म?
क्यों करू मैं अपने शून्य पर शर्म? जब अनगिनत की शुरुआत ही शून्य से है… ये तो केवल एक पड़ाव था,सफर तो अभी बहुत है… शून्य से शुरुआत की तो क्या हुआ… हम अनन्त के मुसाफिर है… परिश्रम मेरा ठिकाना है गगन के उसपार तक जाना है…. कभी तो वह दिन भी आएगा मंज़िल तक…