क्या तेरे मां बाप ने इसी दिन के लिए तुझे पाला था?
जब हुआ था जन्म तेरा तो सब ने ताना मारा था,
फिर तेरे पिता ने तुझ पर एक आंच भी ना आने दी..
अपने पिता का सोच कर ,क्या तुझको लज्जा न आई,
कुछ कर्तव्य थे तेरे भी उसे छल्ली-छल्ली कर आई…
संसार के दुख को झेल कर, तुझको सुख से बड़ा किया…
उसके बदले तूने उनका सर शर्म से झुका दिया…..
यूं तो खटकती है तुझे समाज की बाते लेकिन ,
समाज को बोलना पड़े ऐसा काम ही क्यों करती है…
क्लब में जाना दारू पीना ये तुझे आधुनिक नहीं बनाता है,
तेरे घर में कैसे संस्कार मिले ये उसे दर्शाता है||
अब तू ही बता दे बेटी..
क्या इस दिन के लिए तुझे तेरे पैरो पर खड़ा किया था,
भूल क्या हो गई थी उनसे जो तुझे इतना बड़ा किया था,
कब तक ऐसे मां-बाप को इतना तू शर्मसार करेगी,
कब तक उन पर बदनामी का ऐसा अत्याचार करेगी||
© सचि मिश्रा